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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र

प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?

अथवा
अभिजात वर्ग से आप क्या समझते हैं?

उत्तर -

अभिजात वर्ग का परिभ्रमण

प्रत्येक समाज में किसी न किसी आधार पर ऊँच-नीच का एक संस्तरण अवश्य ही होता है। आमतौर पर प्रत्येक समाज को दो मुख्य वर्गों में विभक्त किया जा सकता है जोकि साधारण बोलचाल में उच्च वर्ग (upper class) और निम्न वर्ग (lower class) कहलाते हैं। उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में शक्ति होती है और वे प्रायः समाज के शासक होते हैं। इस दृष्टिकोण से यह वर्ग प्रभावशाली वर्ग होता है जिसके सदस्य अधिक बुद्धिमान, चतुर, कुशल और समर्थ होते हैं। इन्हीं गुणों के बल पर वे सामाजिक संस्तरण में उच्च आसन पर अधिष्ठित होते हैं तथा समाज का शासन करते हैं। परेटो ने इसी विशिष्ट उच्च वर्ग को 'अभिजात वर्ग (Elite) कहा है।

परेटो के मतानुसार, इस अभिजात वर्ग के अन्तर्गत निरन्तर ऊपर नीचे आने जाने की प्रक्रिया चलती रहती है जिसे परेटो ने अभिजातों के परिभ्रमण (circulation of the elites) की संज्ञा दी है। दूसरे शब्दों में, सामाजिक संस्तरण की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि कोई भी वर्ग, विशेषकर अभिजात वर्ग अधिक स्थिर नहीं होता। अपने जीवन में प्राप्त सफलता या असफलता के अनुसार निम्न वर्ग के व्यक्ति उच्च वर्ग में जा या आ सकते हैं। इस परिभ्रमण की गति प्रत्येक समाज में एक सी नहीं होती है। परन्तु परिभ्रमण की प्रक्रिया प्रत्येक समाज में होती अवश्य है क्योंकि कोई भी वर्ग पूर्णतया बन्द वर्ग' हो सके, ऐसा सम्भव नहीं। वास्तव में प्रत्येक समाज में किसी न किसी गति से अभिजातों के परिभ्रमण की प्रक्रिया चलती ही रहती है, यद्यपि इस प्रकार के परिभ्रमण को अधिक प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। उसी प्रकार अभिजातों के परिभ्रमण की तीव्रता प्रत्येक समाज में भिन्न भिन्न होती है। फिर भी यह सदैव होने वाली एक प्रक्रिया है। संक्षेप में, अभिजातों के परिभ्रमण की गति तथा तीव्रता एक समाज से दूसरे समाज तथा एक समय से दूसरे समय के अनुसार भिन्न भिन्न होती है, परन्तु हर समय में तथा हर समाज में होती अवश्य रहती है। अति संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वर्गों में नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे आने-जाने की प्रक्रिया हर समाज में चलती रहती है और उसके तीन प्रमुख कारण हैं-

(1) कोई भी वर्ग पूर्णतया बन्द नहीं हो सकता।
(2) अभिजात वर्ग शक्ति के अधिकारी होते हैं, और वह शक्ति उन्हें भ्रष्ट कर देती है तथा उनका पतन होता है।
(3) नीचे के वर्ग में भी कुशल और बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं, जोकि ऊपर की ओर चढ़ते जाते

जैसाकि प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है कि समाज में इस अभिजात वर्ग का प्रभुत्व होता है, परन्तु वे परिस्थितियाँ, जिन पर उसका प्रभुत्व निर्भर है, परिवर्तनशील होती हैं। परिस्थितियों के बदलने के साथ- साथ इनका प्रभुत्व भी घटता-बढ़ता रहता हैं। नई शक्ति के उदय हो जाने पर नए अभिजात वर्ग का जन्म होता है और पुराना अभिजात वर्ग धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। परेटो के मतानुसार, अभिजात वर्ग अधिक दिन तक स्थिर या जीवित नहीं रहता। इस वर्ग की इस प्रकार की प्रवृत्ति का फलं यह होता है कि 'अभिजातों की संख्या घटती है और उनके रिक्त स्थानों को भरने के लिए निम्न वर्ग के सदस्यों में से उन लोगों को ऊपर जाने का अवसर प्राप्त होता है जोकि अधिक कुशल और समर्थ होते हैं। अभिजात वर्ग में पाई जाने वाली कमी की पूर्ति इसी प्रकार होती है। इसी कारण जर्मनी में भी जो आज अभिजात वर्ग कहलाता है उसके अधिकतर सदस्य वे लोग हैं जोकि प्राचीन काल में अभिजातों के नौकर मात्र थे। अतः स्पष्ट है कि अभिजात वर्ग का नाश उनकी संख्या में निरन्तर कमी होते रहने के कारण तथा उनके गुणों की समाप्ति के कारण होता है। उनके खाली स्थानों को निम्न वर्ग के सदस्य भरते रहते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अभिजात वर्ग समाज का शासन करते हैं, परन्तु अपनी कब्र को भी स्वयं ही खोदते हैं। इसलिए परेटो ने स्पष्ट ही कहा है, "इतिहास कुलीन तन्त्रों का कब्रिस्तान है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि परेटो के मतानुसार, अभिजात वर्ग का पतन तथा निम्न वर्ग का उत्थान या ऊपर की ओर चढ़ना हर समाज में हर समय होता रहता है। परन्तु अभिजात वर्ग इस परिभ्रमण या प्रवाह के पक्ष में नहीं होते हैं, क्योंकि इसके द्वारा निम्न वर्ग के लोग निरन्तर उनके वर्ग में आते हैं जिसके फलस्वरूप उनकी प्रतिष्ठा और शक्ति दोनों ही घटती जाती है। इस प्रकार वे इस प्रवाह को रोकने का भरसक प्रयत्न करते रहते हैं और उनके उचित तथा अनुचित साधनों को उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपनाने में भी नहीं हिचकते हैं। अधिकार, शक्ति तथा प्रतिष्ठा का अपना मोह होता है जो अभिजात वर्ग के लोगों को जकड़े रहता है और वे अपनी स्थिति या प्रतिष्ठा को अपनाए रखने के लिए शक्ति या बल का भी प्रयोग करते हैं। इसका परिणाम तो अभिजात वर्ग के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है। परेटो का विश्वास है कि पुराने कुलीन-तन्त्र का अन्त तथा उसके स्थान पर कठोर सैनिक कुलीन-तन्त्र का जन्म अवश्य ही होकर रहेगा। परन्तु इस नई व्यवस्था का निर्माण निम्न वर्ग के लोगों के द्वारा ही होगा।

अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की उपरोक्त अवधारणा को भारतीय पृष्ठभूमि (Indian scene) पर भी लागू किया जा सकता है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण भारतीय जाति प्रथा है। पहले जातीय संस्तरण में ब्राह्मणों की स्थिति सबसे ऊपर थी और सम्पूर्ण जाति व्यवस्था इन्हीं की प्रतिष्ठा पर निर्भर थी। प्राचीन भारत में पुरोहित राजाओं का भी उल्लेख मिलता है। वैसे भी राज पुरोहितों को राजनीतिक मामलों में पर्याप्त क्षमताएँ प्राप्त थीं और राजा लोग इन पुरोहितों की सलाह व आज्ञा को शायद ही अमान्य करते थे। इस रूप में ब्राह्मण शासक वर्ग तक को नियन्त्रित करने वाले होते थे। सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में भी इसकी प्रचुर शक्ति होती थी। इसके विपरीत, हरिजनों को जातीय संस्तरण में सबसे अधम या निम्नतम स्थान दिया गया था और वे असंख्य सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक निर्योग्यताओं के शिकार थे। परन्तु धीरे-धीरे हरिजनों की सामाजिक स्थिति ऊपर की ओर उठती गई और आज कम से कम वैधानिक दृष्टिकोण से, ब्राह्मणों का प्रभुत्व पर्याप्त घट गया है, वे अपने पहले की बुद्धिमत्ता, कुशलता, सामर्थ्य और शौर्य को खोकर धीरे-धीरे नीचे की ओर उतरते जा रहे हैं अर्थात् उनकी पूर्व प्रतिष्ठा व स्थिति से उनका पतन हो रहा है। उसी प्रकार अंग्रेजी शासनकाल में भारतवर्ष में जो लोग शासक थे, शक्तिवान तथा प्रभावशाली थे, आज उनका पतन हो चुका है उनको जेल में बन्द कर देते थे और जिन पर लाठी व गोलियों की वर्षा करते थे तथा जिनको वे 'काला आदमी' या 'गुलाम' की संज्ञा देते थे। वहीं 'गुलाम' आज राजा है, शासक है, शक्तिवान और प्रभावशाली है और जो राजा थे उनका आज भारतीय सामाजिक व्यवस्था से नाम तक मिट गया है। वे चले गए हैं, उनका 'कब्रिस्तान' मात्र भारत में रह गया है। भारतीय पृष्ठभूमि पर अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का इससे उत्तम उदाहरण और क्या हो सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
  2. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
  3. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  5. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
  15. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
  22. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
  23. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
  25. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
  27. प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
  28. प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
  29. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
  36. प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
  37. प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
  38. प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
  40. प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
  41. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
  42. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
  43. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
  47. प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
  49. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
  51. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
  52. प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
  53. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  54. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
  56. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
  57. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
  58. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  62. प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
  63. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
  64. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  66. प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
  67. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  68. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  70. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  71. प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
  72. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
  73. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  74. प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  75. प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
  76. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
  77. प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  78. प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
  79. प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
  80. प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
  81. प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
  82. प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
  83. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
  84. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
  85. प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  86. प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
  94. प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  95. प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
  96. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
  97. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
  98. प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
  99. प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
  100. प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
  105. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
  107. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  109. प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
  110. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  113. प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  115. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
  116. प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
  117. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  118. प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
  119. प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
  121. प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  122. प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
  123. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
  125. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  126. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
  127. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
  128. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
  129. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
  130. प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
  131. प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
  133. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  134. प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  135. प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
  136. प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
  137. प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
  138. प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
  139. प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
  140. प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  141. प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
  142. प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
  143. प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  144. प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
  145. प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
  146. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  147. प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
  148. प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  149. प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  151. प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  152. प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  153. प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  154. प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
  155. प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  156. प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
  157. प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  159. प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?

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